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Saturday, 4 January 2020

Tribes of Jharkhand/ झारखंड की जनजातियां 1

Tribes of Jharkhand
झारखंड की जनजातियां
Jharkhand ki janjatiyan


झारखंड की जनजातियां भाग 1

झारखंड की जनजातियों के बारे में सामान्य जानकारी
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झारखंड की जनजातियां
TRIBES OF JHARKHAND



 ० झारखंड की अनेक जनजातियों का उल्लेख हिंदू पौराणिक ग्रंथों में मिलता है।

० पुरापाषाण काल से ही झारखंड जनजातियों का प्रमुख अधिवास स्थल रहा है।

० झारखंड की जनजातियों को आदिवासी, आदिमजाति, वनवासी, गिरिजन सहित अन्य कई नामों से पुकारा जाता है किंतु आदिवासी शब्द जिसका शाब्दिक अर्थ *आदि काल से रहने वाले लोग* होता है सर्वाधिक प्रचलित है।

० झारखंड में 32 प्रकार की जनजातियां पाई जाती हैं जो संविधान के *अनुच्छेद 342* के अंतर्गत राष्ट्रपति द्वारा अधिसूचित है।

० झारखंड में 24 जनजातियां प्रमुख जनजातियों की श्रेणी में आती है जबकि अन्य आठ को आदिम जनजातियों की श्रेणी में रखा गया है।

० 8 आदिम जनजातियां हैं:- बिरहोर, कोरबा, असुर, परहिया, सौरिया पहाड़िया, विरजिया, माल पहाड़िया तथा सबर।

० 2011 की जनगणना के अनुसार राज्य की जनजातियों की कुल संख्या *86,45,042* है जो यहां की कुल जनसंख्या का *26.2%* है।

० इनमें आदिम जनजातियों की संख्या *1,92,425* है जो राज्य की कुल आबादी का *0.72%* है।


० आदिम जनजातियां, अनुसूचित जनजातियों के अंतर्गत आने वाले वैसी जनजातियां हैं, जिनकी अर्थव्यवस्था कृषि पूर्वकालीन है, यानी जो अपना जीवनयापन इन दिनों भी आखेट तथा कंद-मूल संग्रह करने के साथ-साथ झूम खेती (स्थानांतरित कृषि) से करते हैं।


० यहां की कुल जनजातियां आबादी का *92.86%* ग्रामीण क्षेत्रों में और *7.14%* आबादी शहरों में निवास करती है।


० प्रजातीय तत्वों के आधार पर झारखंड की सभी जनजातियों को प्रोटो-ऑस्ट्रोलाॅयड वर्ग में रखा गया है।


० *ग्रियर्सन* ने झारखंड क्षेत्र की जनजातीय भाषाओं को *ऑस्ट्रिक* (मुंडा भाषा) और *द्रविडियन* समूहों में बांटा है।


० अधिकांश जनजातियों भाषाएं *ऑस्ट्रिक समूह* की हैं। सिर्फ उरांव जनजाति की *कुडुख भाषा* और माल पहाड़िया एवं सौरिया पहाड़िया की *मालतो भाषा* *द्रविड़ समूह* की मानी जाती है।


० झारखंड की जनजातियां श्रीलंका की *बेड्डा* तथा ऑस्ट्रेलिया के मूल निवासियों से काफी हद तक मिलती जुलती है।


० झारखंड की प्रत्येक जनजाति के अपने-अपने धार्मिक कर्मकांड, सामाजिक आचार विचार, विधि विधान, परिवार गोत्र, जन्म मृत्यु, संस्कार आदि होते हैं, जो अन्य जनजातियों से उनकी अलग पहचान तय करते हैं।

० जनजातीय गांव में कुछ विशिष्ट संस्थाएं होती हैं, जो इनकी संस्कृति को विलक्षणता प्रदान करती है। गांव के बीच में *"अखड़ा"* (नाच का मैदान एवं पंचायत स्थल) होता है। गांव में सरना(पूजा स्थल) भी होता है।


० जनजातीय गांव की एक अन्य प्रमुख विशेषता *युवागृह* (शिक्षण प्रशिक्षण संस्था) है। उरांव जनजाति में इसे *धूमकुड़िया* और मुंडा, असुर, कोड़ा जनजाति में *गितिओड़ा* नाम से जाना जाता है।


० जनजातियों में गोत्र को किली, पारी, कुंदा आदि कई नामों से जाना जाता है।


० जनजातीय परिवार प्रायः एकल होते हैं। संयुक्त परिवार बहुत कम पाए जाते हैं।

० झारखंड का जनजातीय समाज *पितृसत्तात्मक* होता है।

० उत्तराधिकार पुरुष पंक्ति में चलता है पिता की संपत्ति में पुत्रों को समान हिस्सा मिलता है उसमें लड़की का हक नहीं होता है।


० जनजातीय समाज में पुरुष महिला का सम्मानजनक स्थान है। इनका समाज लिंगभेद की इजाजत नहीं देता।

० जनजातीय परिवार साधारणत: एक विवाही होता है, लेकिन विशेष परिस्थिति में दूसरी तीसरी पत्नी रखने की भी मान्यता है।


० इनमें बाल विवाह प्रथा प्रायः नहीं है। दहेज प्रथा भी नहीं है, बल्कि *वधू मूल्य* की परंपरा है।

० वधु मूल्य विभिन्न जनजातियों में अलग-अलग नाम से जाना जाता है।
जैसे:- 
० पोन -- संथाल, हो, करमाली, सौरिया पहाड़िया
० गोनोंग -- मुंडा
० पोटे -- सबर
० डाली -- किसान, परहिया
० हरजी -- बनजारा
० सुकदाम -- कवर



० विवाह के पूर्व *सगाई* का रस्म केवल बनजारा जनजाति के लोग करते हैं, तथा दहेज लेते हैं, और वधु मूल्य देते हैं।

० वैवाहिक रस्म-रिवाज में सिंदूर लगाने की प्रथा प्रायः सभी जनजातियों में है, केवल खोंड जनजाति में *जयमाला* का रिवाज है।

० जनजातियों में विवाह के रस्म पुजारी यथा पाहन, देउरी, नाये आदि द्वारा संपन्न कराए जाते हैं। कुछ जनजातियों में विवाह ब्राह्मण कराते हैं।


० कृषि जनजातीय अर्थव्यवस्था का मूल आधार है, किंतु जीविकोपार्जन के लिए अन्य साधन जैसे-- वन उत्पाद संग्रहण, शिकार करना, शिल्पकारी, पशुपालन और मजदूरी को भी अपनाया जाता है।


० जनजातियों का प्राचीन धर्म *सरना धर्म* है। इसमें प्रकृति पूजा प्रमुख है।

० इनके अधिकांश पर्व कृषि और प्रकृति से जुड़े होते हैं। सरहुल, करमा, सोहराय यहां के मुख्य पर्व हैं।

० अधिकांश जनजातियों के सर्वोच्च देवता सूर्य हैं, जिसे संथाल, मुंडा, असुर भूमिज आदि--- सिंगबोंगा, 
हो--- सिंगी, 
माल---- पहाड़िया बेरु, 
महली--- सुरजी देवी, 
सबर---- यूडिंग सूम, 
खोंड---- बेलापून ; नाम से पुकारते हैं।


० अन्य जनजातियों के सर्वोच्च देवता अलग-अलग हैं।
० उरांव--- धर्मेश
० सौरिया पहाड़िया --- बेड़ो गोसाईं
० गोंड --- बुढादेव
० बिंझिया --- विंध्यवासिनी देवी
० खरवार --- मुचुकरनी
० भूमिज --- गोराई ठाकुर
० लोहरा --- विश्वकर्मा
० परहिया --- धरती
० बनजारा --- बनजारा देवी
० गोड़ाइत --- पुरबिया
० बिरहोर --- वीर
० बथुड़ी --- पोलाठाकुर
० खड़िया --- गिरिंग


० जनजातियों का अपना धार्मिक विशेषज्ञ (पुजारी) होता है जैसे:-
पाहन- मुंडा, उरांव आदि में;
बैगा- खरवार, खड़िया, असुर, बिंझिया, किसान आदि में;
देउरी- परहिया, सबर, बथुड़ी आदि में;
देहुती -- माल पहाड़िया
नायके -- संथाल
नाये -- बिरहोर
लाया -- भूमिज
गोसाईं-- चेरो
देवोनवा -- हो


० यहां की जनजातीय लोक सांस्कृतिक विरासत भी समृद्ध है। शास्त्रीय नृत्य संगीत का झारखंड में भले अभाव हो लेकिन लोक संगीत और लोक नृत्य की भरमार है यहां। वही जीवन है यहां के लोगों का। झारखंडी भाषाओं में एक लोकप्रिय कहावत है कि यहां बोलना ही संगीत और चलना ही नृत्य है।


० सरहुल, जदुर, करम, जतरा, झूमर, बरोया, माठा, डोमकच, सोहराय, अंगनई, चाली, फगुडंडी आदि यहां के प्रमुख राग/ गीत-नृत्य है। नृत्य में परंपरागत परिधान, फूल पत्तों, पंखों, आभूषणों से श्रृंगार करने और सजने संवरने की परंपरा है।


० जनजातीय परिवार प्रायः मांसाहारी होते हैं। केवल टाना भगत और साफाहोड़ समूह मांस मदिरा से परहेज करते हैं।


० जनजातियों में शराब पीना सार्वलौकिक प्रथा है। चावल से बनी शराब (हड़िया) इनका प्रिय पेय है।


० जनजातियों में मृत्यु के बाद शव को गाड़ने और जलाने की दोनों प्रथाएं है, दाह संस्कार कम होता है।


० जनजातियों के ग्रामीण जीवन में *हाट*
 का काफी महत्व है। हाट साप्ताहिक, अर्ध साप्ताहिक या पाक्षिक लगता है। यहां क्रय विक्रय के अलावे मिलना जुलना समाचार विनिमय वैवाहिक संबंध आदि की भी चर्चा होती है। 


० राजनीतिक क्षेत्र में भी यहां के जनजातियों की विशेष भूमिका रही है। झारखंड के पूर्व तथा वर्तमान मुख्यमंत्री जनजातीय समाज के ही हैं।


० जनसंख्या की दृष्टि से झारखंड की प्रमुख जनजातियों में पहले स्थान पर *संथाल* , दूसरे स्थान पर *उरांव* , तीसरे स्थान पर *मुंडा*  तथा चौथे स्थान पर *हो* है।


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झारखंड की 32 अनुसूचित जनजातियां निम्नलिखित है जिसकी चर्चा हम आगे करें
1. असुर
2. बैगा
3. बंजारा
4. बथुड़ी
5. बेदिया
6. बिंझिया
7. बिरहोर
8. बिरजिया
9. चेरो
10. चीक बड़ाईक
11. गोंड
12. गोड़ाइत
13. हो
14. करमाली
15. खड़िया
16. गोंड
17. किसान
18. कोरा
19. कोरवा
20. लोहरा
21. माहली
22. माल पहाड़िया
23. मुंडा
24. उरांव
25. परहिया
26. संथाल
27. सौरिया पहाड़िया
28. सबर
29. भूमिज
30. खरवार
31. कवर
32. कोल

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