Tuesday 21 April 2020

झारखंड के प्रमुख मंदिर/ famous temples of Jharkhand

झारखंड के प्राचीन व प्रमुख मंदिर

FAMOUS TEMPLES OF JHARKHAND


1. छिन्नमस्तिका मंदिर (रजरप्पा):-

० यह मंदिर रामगढ़ जिला में अवस्थित है।

० यह दामोदर नदी और भेंड़ा (भैरवी) नदी के संगम पर स्थित है।

० इसकी प्रसिद्धि शक्तिपीठ के रूप में है। तांत्रिकों के लिए तंत्र साधना हेतु इसे उपयुक्त स्थल माना जाता है।

० यहां शारदीय दुर्गा उत्सव में मां की महानवमी पूजा सबसे पहले संथाल आदिवासियों द्वारा प्रारंभ की जाती है और इन्हीं के द्वारा प्रथम बकरे की बलि दी जाती है।


2. महामाया मंदिर (गुमला)

० रांची-लोहरदगा-गुमला मार्ग में लोहरदगा से 14 किलोमीटर दूर गम्हरिया नामक स्थान से 1 किलोमीटर पश्चिम में हापामुनि नामक गांव में मां महामाया का मंदिर स्थित है।

० इस मंदिर का निर्माण नागवंशी राजा गजघंट ने 908 ईस्वी में करवाया था।

० अभिलेख पर वर्णित अंकों के अनुसार 1458 ईस्वी में नागवंशी राजा महाराज शिवदास कर्ण ने महामाया मंदिर में शेषशैय्या पर विराजमान भगवान विष्णु की मूर्ति की स्थापना करवाई थी।

० इस मंदिर में मां काली की मूर्ति स्थापित है। इस क्षेत्र में सुख शांति के लिए काली मंदिर की स्थापना एक तांत्रिक ने करवाई थी।

० यह तांत्रिक पीठ है।

० इस मंदिर का प्रथम पुरोहित द्विज हरीनाथ थे।


3. मां योगिनी मंदिर (गोड्डा):-

० यह मंदिर बाराकोपा पहाड़ी पर अवस्थित है।

० मान्यता के अनुसार मां सती का दाहिना जांघ यहां गिरा था।

० यहां मां की प्रतिमा के रूप में जांग की आकृति का शैल अंश है।

० भक्तजन यहां लाल वस्त्र चढ़ाते हैं।

० इस मंदिर के समस्त खर्चों का वाहन श्रीमती चारूशीला देवी ने किया था।

4. तपोवन (देवघर):-

० यहां भगवान शिव का एक मंदिर है।

० यहां गुफाएं हैं जिनमें ब्रह्मचारी लोग निवास करते हैं।

० कहा जाता है, कि कभी माता सीता ने यहां तपस्या की थी।



5. उग्रतारा मंदिर (नगर):-

० यह मंदिर लातेहार जिला के चंदवा प्रखंड मुख्यालय से लगभग 9 किलोमीटर दूरी पर नगर गांव (मंदारगिरी पहाड़ी) में अवस्थित है।

० इस मंदिर की प्रसिद्धि एक सिद्ध तंत्र पीठ के रूप में दूर-दूर तक व्याप्त है।

० मंदिर से लगभग 2 किलोमीटर दूर पश्चिम की और पहाड़ी पर एक मजार है यह मजार मदारशाह के मजार के नाम से विख्यात है।

० काली कुल की देवी उग्रतारा और श्री कुल की देवी लक्ष्मी का एक ही स्थान पर स्थापित होना इस मंदिर की मुख्य विशेषता है।

० पलामू गजेटियर के अनुसार  इस मंदिर का निर्माण मराठों के विजय स्मारक के रूप में रानी अहिल्याबाई ने करवाया था।



6. श्री बंशीधर मंदिर (गढ़वा):-

० यह मंदिर नगर उंटारी के राजा के गढ़ के पीछे स्थित है।

० इस मंदिर की स्थापना 1885 ईस्वी में की गई थी, यहां राधा कृष्ण की प्रतिमाएं स्थापित की गई हैं।


7. वैद्यनाथ मंदिर (देवघर):-

० इस मंदिर का निर्माण गिद्धौर राजवंश के दसवें राजा पूरणमल द्वारा कराया गया था।

० शिव के द्वादश ज्योतिर्लिंगों में से एक मनोकामना लिंग बैद्यनाथ धाम देवघर में स्थापित है।

० इस मंदिर के प्रांगण में कुल 22 मंदिर हैं। यह हैं-- वैद्यनाथ, पार्वती, लक्ष्मी नारायण, तारा, काली, गणेश, सूर्य, सरस्वती, रामचंद्र, देवी अन्नपूर्णा, आनंद भैरव, नीलकंठ, शनि, गंगा, नर्वदेश्वर, राम लक्ष्मण सीता, जगत जननी, काल भैरव, ब्रह्म, संध्या, गौरी, हनुमान, मनसा शंकर, बगुला माता काली के मंदिर।


8. युगल मंदिर (देवघर):-

० यह मंदिर भी देवघर में है।

० इसे नौलखा मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, इसके निर्माण में ₹9 लाख खर्च हुए थे।



9. बेनीसागर का शिव मंदिर (प० सिंहभूम)

० इस मंदिर का निर्माण काल 602 से 625 के बीच बताया जाता है।

० संभवत गौड़ शासक शशांक द्वारा इस मंदिर का निर्माण हुआ था।

० यहां से छठी शताब्दी की 33 छोटी बड़ी मूर्तियां मिली हैं जिनमें हनुमान, गणेश और दुर्गा की प्रतिमाएं प्रमुख हैं।

० शिवलिंग के साथ शिलालेख भी यहां से प्राप्त हुए हैं।


10. जगन्नाथपुर मंदिर (रांची):-

० इस मंदिर की स्थापना 1691 ईस्वी में नागवंशी राजा ठाकुर एनी शाह के द्वारा की गई थी।

० पुरी के जगन्नाथ मंदिर की तर्ज पर यहां भी 100 फीट ऊंचे मंदिर का निर्माण कराया गया है।

० रथ यात्रा के समय यहां विशाल मेला भी लगता है।


11. कौलेश्वरी मंदिर (चतरा):-

० मां कौलेश्वरी देवी का मंदिर 1575 फुट की ऊंचाई वाले कोल्हुआ पहाड़ पर स्थित है।

० कोल्हुआ पहाड़ 3 धर्म, हिंदू बौद्ध और जैनों का संगम स्थल है।

० यहां जैनों के प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव, पार्श्वनाथ एवं आदिनाथ की प्रतिमाएं स्थापित है।

० जैन विद्वान कोल्हुआ पहाड़ को दसवें तीर्थंकर शीतलनाथ जी की तपोभूमि तथा महापुराण के रचनाकार जिनसेन का साधना स्थल मानते हैं।

० इस पर्वत शिखर के पत्थरों पर गौतम बुद्ध की ध्यान मग्न मुद्रा में उत्कीर्ण कुछ प्रतिमाएं भी हैं।


12. टांगीनाथ मंदिर (गुमला):-

० यह मंदिर मझगांव की पहाड़ी पर स्थित है।

० टांगीनाथ पहाड़ पर शिवलिंग के अलावे दुर्गा, भगवती, लक्ष्मी, गणेश, अर्धनारीश्वर, विष्णु, सूर्य देव, हनुमान आदि की मूर्तियां भी हैं।

० यह मूर्तियां प्राचीन शिल्प कला के सुंदर नमूने हैं।

० मुख्य मंदिर का नाम टांगीनाथ अथवा शिव मंदिर है। मंदिर के अंदर एक विशाल शिवलिंग के अलावा आठ अन्य शिवलिंग भी हैं।



13. देवरी मंदिर (रांची):-

० यह मंदिर तमाड़ से 3 किलोमीटर दूर देवरी गांव में स्थित है।

० यहां 16 भुजी देवी की मूर्ति है,देवी की मूर्ति के ऊपर शिव की मूर्ति है तथा अगल बगल में सरस्वती, लक्ष्मी, कार्तिक और गणेश की मूर्तियां हैं।

० परंपरा के अनुसार इस मंदिर में सप्ताह में 6 दिन पाहन और एक दिन ब्राह्मण पुजारी पूजा करते हैं।


14. हल्दीघाटी मंदिर (गुमला):-
० यह मंदिर गुमला जिले के कोरांबे ग्राम में स्थित है।

० यहां का पहला शासक कोल तेली राजा था बाद में यहां रक्सेल आए।

० यह स्थान  नागवंशी राजा तथा रक्सेल के लिए हल्दीघाटी स्वरूप जाना जाता है।


० कोरांबे में वासुदेव राय का मंदिर स्थित है।

० वासुदेव राय की काले पत्थरों से निर्मित आकर्षक मूर्ति प्राचीन परंपरा का प्रतीक है।


15. मां भद्रकाली मंदिर (चतरा):-

० यह मंदिर चतरा जिले के टपोरी प्रखंड में भदुली ग्राम में स्थित है।

० यह एक ही शिलाखंड से तलाशी गई मूर्ति है, जो साढे चार फीट ऊंची ढाई फीट चौड़ी और 30 मन भारी है।

० संभवतया मंदिर पाल काल में पांचवी से छठी शताब्दी के बीच स्थापित की गई थी।

० यहां सहस्त्रलिंगी शिवलिंग भी है, जिसमें 1008 छोटी-छोटी शिवलिंग को खेले गए हैं।

० मंदिर परिसर में ही कोठेश्वरनाथ स्तूप है, जिसके चारों और भगवान बुद्ध की मूर्तियां अंकित हैं। इसके ऊपर 4 इंच लंबा चौड़ा और गहरा एक गड्ढा है जिसमें हमेशा 3 इंच पानी बना रहता है।



16. बासुकीनाथ धाम (दुमका):-
० बासुकीनाथ धाम दुमका से 25 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। वैद्यनाथ धाम आने वाला  प्रत्येक तीर्थयात्री यहां आए बगैर अपनी यात्रा पूरी नहीं मानता।

० वासुकीनाथ की कथा समुद्र मंथन से जुड़ी हुई है। समुद्र मंथन में मंदराचल पर्वत को मथानी और बासुकीनाथ को रस्सी बनाया गया था।

० बासुकीनाथ मंदिर को 150 वर्ष पुराना बताया जाता है, जिसका निर्माण कोई बासाकी तांती ने कराया था जो हरिजन जाति का था।

० शिवरात्रि के दिन यहां विशाल मेला लगता है।



17. सूर्य मंदिर (बुंडू):-

० रांची टाटा मार्ग पर बुंडू के निकट इस मंदिर की स्थापना की गई है।

० यह मंदिर सूर्य के रथ की आकृति में बनाया गया है।

० इसका निर्माण संस्कृति - विहार रांची नामक एक संस्था ने किया है।

० मंदिर की खूबसूरती के संबंध में स्थानीय साहित्यकारों ने इसे *पत्थर पर लिखी कविता* कहा है।



कुछ अन्य प्रमुख मंदिर


० भुनेश्वरी मंदिर            जमशेदपुर
० बैद्यनाथ मंदिर            देवघर
० छिन्नमस्तिका मंदिर     रजरप्पा, रामगढ़
० भद्रकाली मंदिर          इटखोरी, चतरा
० जैन मंदिर                 गिरिडीह
० देवड़ी मंदिर               रांची
० पहाड़ी मंदिर              रांची
० जगन्नाथ मंदिर            रांची
० नरसिंह धाम               हजारीबाग
० कौलेश्वरी देवी मंदिर     चतरा
० पारसनाथ मंदिर           गिरिडीह
० झारखंड धाम मंदिर      गिरिडीह
० मदन मोहन मंदिर         बोड़ेया, रांची
० नौलखा मंदिर              देवघर
० राम लक्ष्मण मंदिर        देवघर
० काली दुर्गा मंदिर          देवघर
० बासुकीनाथ मंदिर      बासुकीनाथधाम, दुमका
० सती मंदिर                 रांची
० काली देवी मंदिर    मैथन, धनबाद
० पार्श्वनाथ मंदिर       चतरा
० प्राचीन जैन मंदिर     मधुबन, गिरिडीह
० टांगीनाथ मंदिर        मझगांव, गुमला
० आजन धाम             गुमला
० महामाया मंदिर         गुमला
० सूर्य मंदिर                बुंडू, रांची
० बेनीसागर का शिव मंदिर    प० सिंहभूम
० वासुदेव राय मंदिर      कोराम्बे, गुमला
० श्री वंशीधर मंदिर       नगर उंटारी, गढ़वा
० सोमेश्वर नाथ मंदिर    सरैयाहाट, दुमका
० पांडेश्वर नाथ मंदिर     सरैयाहाट, दुमका
० हल्दीघाटी मंदिर         गुमला




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झारखंड के प्रमुख मंदिर




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