Tribes of Jharkhand
झारखंड की जनजातियां
Jharkhand ki janjatiyan
झारखंड की जनजातियां भाग 4
झारखंड की जनजातियां भाग 4
० यह जनजाति रांची गुमला सिमडेगा पूर्वी एवं पश्चिमी सिंहभूम सरायकेला खरसावां तथा संथाल परगना प्रमंडल में पाई जाती है।
० 2011 की जनगणना के अनुसार झारखंड में इनकी इनकी कुल जनसंख्या 2,16,226 है जो कि राज्य की जनजातियां संख्या का 2.5% है।
० इनका मुख्य पेशा लोहे के औजार और हथियार बनाना है। यह मुख्यतः कृषि से संबंधित औजार बनाते हैं।
० प्रजातीय दृष्टि से लोहरा जनजाति को प्रोटो ऑस्ट्रोलॉयड ग्रुप में रखा जाता है।
० इस जनजाति के लोग सदानी भाषा का प्रयोग करते हैं।
० लोहरा परिवार पितृसत्तात्मक एवं पितृवंशीय होता है।
० इनमें टोटम के आधार पर गोत्र प्रणाली पाई जाती है।
० सोन, साठ, तुतली, तिर्की, धान, मगहिया, कछुआ आदि इनके मुख्य गोत्र है।
० सिंगबोंगा और धरती माई इनके श्रेष्ठ देवता है।
० इनमें वधू मूल्य (आयोजित विवाह) का प्रचलन पाया जाता है।
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० इनका मुख्य निवास स्थल गुमला सिमडेगा रांची पलामू और कोल्हान प्रमंडल है।
० गोंड समाज तीन वर्गों में विभाजित है-- राजगोंड (अभिजात वर्ग), धुर गोंड(सामान्य वर्ग) और कमियां(भूमिहीन श्रमिक - मजदूर)
० गोंड की भाषा *गोंडी* है, किंतु यह लोग बोलचाल में *सादरी नागपुरी* का प्रयोग करते हैं।
० इनमें संयुक्त परिवार का काफी महत्व है।
० यह लोग संयुक्त परिवार को *भाई बंद* कहते हैं।
० जब कोई संयुक्त परिवार विस्तृत परिवार में विकसित हो जाता है तो उसे *भाई बिरादरी* कहा जाता है।
० गोंड परिवार पितृसत्तात्मक एवं पितृ वंशीय होता है।
० इनके प्रमुख देवता *ठाकुर देव* और *ठाकुर देई* हैं, जो सूर्य और धरती के प्रतीक हैं।
० यह लोग ठाकुर देव को *बूढ़ादेव* भी कहते हैं।
० इनका पुजारी *बैगा* कहलाता है।
० कर्मा सरहुल सोहराय जितिया आदि इनके मुख्य पर्व हैं।
० इनका मुख्य पेशा *खेती-बाड़ी* है।
० किस जनजाति के लोग स्थानांतरित खेती को *दीपा* या *बेवार* कहते हैं
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० जनजाति सिंहभूम, रांची, गुमला, सिमडेगा, लोहरदगा, हजारीबाग, बोकारो, धनबाद और संथाल परगना में निवास करती है।
० *रिजले* ने इन्हें पांच उप जातियों में विभक्त किया है। यह है-- बांस फोड़ माहली (टोकरी बनाने वाले), पातर माहली (खेतिहर), सुलंकी माहली (मजदूर), तांती माहली (पालकी ढोने वाले) और माहली मुंडा।
० इनका मुख्य व्यवसाय बांस की टोकरीयां बनाना और ढोल बजाना है।
० इनका विवाह टोटमवादी वंशो में होता है।
० इनका मुख्य देवता सुरजी देवी हैं।
० माली परिवार पितृसत्तात्मक एवं पितृ वंशीय होता है।
० इस जनजाति के लोग पुरखों की पूजा गोड़म साकी (बूढ़ा बूढ़ी पर्व) के रूप में करते हैं।
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० इनका मुख्य निवास स्थान संथाल परगना के दुमका जामताड़ा देवघर गोड्डा पाकुर और साहिबगंज जिला है।
० प्रजातीय दृष्टि से माल पहाड़िया को प्रोटो ऑस्ट्रोलॉयड समूह में रखा जाता है। रिजले ने इन्हें द्रविड़ वंश का माना है।
० रसेल और हीरालाल के अनुसार यह पहाड़ों में रहने वाले *सकरा* जाति के वंशज हैं।
० बुकानन हैमिल्टन ने माल पहाड़िया का संबंध *मलेर* से बताया है।
० माल पहाड़िया की भाषा *मालतो* है जो द्रविड़ भाषा परिवार की मानी जाती है।
० इनकी जीविका का मुख्य साधन शिकार खाद्य संगठन था झूम खेती है जिसे *कुरवा* कहा जाता है।
० के लोग अपनी भूमि को चार भागों में बांटते हैं:- सेम, टिकुर, डेम और घर-बाड़ी।
० सेम- काफी उपजाऊ भूमि को कहते हैं।
० टिकुर- कम उपजाऊ भूमि को कहते हैं।
० डेम- सेम और टिकुर के बीच की भूमि को डेम कहते हैं।
० घर बाड़ी- घर से सटा हुआ भूमि जिसमें सब्जियां लगाते हैं।
० माल पहाड़िया का सर्व प्रमुख देवता धरती गोरासी गोसाई है। इसे वसुमति गोसाई या वीरू गोसाई भी कहा जाता है।
० माल पहाड़िया के गांव का मुखिया मांझी कहलाता है। वही ग्राम पंचायत का प्रधान होता है
० माल पहाड़िया में गोत्र नहीं पाया जाता है।
० कर्मा फागुन एवं नवाखानी इनके प्रमुख त्यौहार हैं।
० इन जनजाति में वधू मूल्य को पोन या बंदी कहा जाता है।
० माल पहाड़िया में वधू मूल्य में सूअर देने की प्रथा है, जो इनके आर्थिक स्तर और सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रतीक है।
० इनका परिवार पितृसत्तात्मक एवं पितृवंशीय होता है।
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झारखंड की जनजातियां भाग 4
8. लोहरा जनजाति
० लोहरा जनजाति झारखंड की जनजातियों में एक पेशेवर जनजाति है।० यह जनजाति रांची गुमला सिमडेगा पूर्वी एवं पश्चिमी सिंहभूम सरायकेला खरसावां तथा संथाल परगना प्रमंडल में पाई जाती है।
० 2011 की जनगणना के अनुसार झारखंड में इनकी इनकी कुल जनसंख्या 2,16,226 है जो कि राज्य की जनजातियां संख्या का 2.5% है।
० इनका मुख्य पेशा लोहे के औजार और हथियार बनाना है। यह मुख्यतः कृषि से संबंधित औजार बनाते हैं।
० प्रजातीय दृष्टि से लोहरा जनजाति को प्रोटो ऑस्ट्रोलॉयड ग्रुप में रखा जाता है।
० इस जनजाति के लोग सदानी भाषा का प्रयोग करते हैं।
० लोहरा परिवार पितृसत्तात्मक एवं पितृवंशीय होता है।
० इनमें टोटम के आधार पर गोत्र प्रणाली पाई जाती है।
० सोन, साठ, तुतली, तिर्की, धान, मगहिया, कछुआ आदि इनके मुख्य गोत्र है।
० सिंगबोंगा और धरती माई इनके श्रेष्ठ देवता है।
० इनमें वधू मूल्य (आयोजित विवाह) का प्रचलन पाया जाता है।
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9. गोंड:-
० इस जनजाति को द्रविड़ प्रजाति की एक शाखा माना जाता है।० इनका मुख्य निवास स्थल गुमला सिमडेगा रांची पलामू और कोल्हान प्रमंडल है।
० गोंड समाज तीन वर्गों में विभाजित है-- राजगोंड (अभिजात वर्ग), धुर गोंड(सामान्य वर्ग) और कमियां(भूमिहीन श्रमिक - मजदूर)
० गोंड की भाषा *गोंडी* है, किंतु यह लोग बोलचाल में *सादरी नागपुरी* का प्रयोग करते हैं।
० इनमें संयुक्त परिवार का काफी महत्व है।
० यह लोग संयुक्त परिवार को *भाई बंद* कहते हैं।
० जब कोई संयुक्त परिवार विस्तृत परिवार में विकसित हो जाता है तो उसे *भाई बिरादरी* कहा जाता है।
० गोंड परिवार पितृसत्तात्मक एवं पितृ वंशीय होता है।
० इनके प्रमुख देवता *ठाकुर देव* और *ठाकुर देई* हैं, जो सूर्य और धरती के प्रतीक हैं।
० यह लोग ठाकुर देव को *बूढ़ादेव* भी कहते हैं।
० इनका पुजारी *बैगा* कहलाता है।
० कर्मा सरहुल सोहराय जितिया आदि इनके मुख्य पर्व हैं।
० इनका मुख्य पेशा *खेती-बाड़ी* है।
० किस जनजाति के लोग स्थानांतरित खेती को *दीपा* या *बेवार* कहते हैं
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10. माहली:-
० माहली झारखंड की शिल्पी जनजाति है जो बांस की कला में दक्ष और प्रवीण मानी जाती है।० जनजाति सिंहभूम, रांची, गुमला, सिमडेगा, लोहरदगा, हजारीबाग, बोकारो, धनबाद और संथाल परगना में निवास करती है।
० *रिजले* ने इन्हें पांच उप जातियों में विभक्त किया है। यह है-- बांस फोड़ माहली (टोकरी बनाने वाले), पातर माहली (खेतिहर), सुलंकी माहली (मजदूर), तांती माहली (पालकी ढोने वाले) और माहली मुंडा।
० इनका मुख्य व्यवसाय बांस की टोकरीयां बनाना और ढोल बजाना है।
० इनका विवाह टोटमवादी वंशो में होता है।
० इनका मुख्य देवता सुरजी देवी हैं।
० माली परिवार पितृसत्तात्मक एवं पितृ वंशीय होता है।
० इस जनजाति के लोग पुरखों की पूजा गोड़म साकी (बूढ़ा बूढ़ी पर्व) के रूप में करते हैं।
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11. माल पहाड़िया:-
० यह जनजाति झारखंड राज्य में आदिम जनजाति के रूप में चिन्हित है।० इनका मुख्य निवास स्थान संथाल परगना के दुमका जामताड़ा देवघर गोड्डा पाकुर और साहिबगंज जिला है।
० प्रजातीय दृष्टि से माल पहाड़िया को प्रोटो ऑस्ट्रोलॉयड समूह में रखा जाता है। रिजले ने इन्हें द्रविड़ वंश का माना है।
० रसेल और हीरालाल के अनुसार यह पहाड़ों में रहने वाले *सकरा* जाति के वंशज हैं।
० बुकानन हैमिल्टन ने माल पहाड़िया का संबंध *मलेर* से बताया है।
० माल पहाड़िया की भाषा *मालतो* है जो द्रविड़ भाषा परिवार की मानी जाती है।
० इनकी जीविका का मुख्य साधन शिकार खाद्य संगठन था झूम खेती है जिसे *कुरवा* कहा जाता है।
० के लोग अपनी भूमि को चार भागों में बांटते हैं:- सेम, टिकुर, डेम और घर-बाड़ी।
० सेम- काफी उपजाऊ भूमि को कहते हैं।
० टिकुर- कम उपजाऊ भूमि को कहते हैं।
० डेम- सेम और टिकुर के बीच की भूमि को डेम कहते हैं।
० घर बाड़ी- घर से सटा हुआ भूमि जिसमें सब्जियां लगाते हैं।
० माल पहाड़िया का सर्व प्रमुख देवता धरती गोरासी गोसाई है। इसे वसुमति गोसाई या वीरू गोसाई भी कहा जाता है।
० माल पहाड़िया के गांव का मुखिया मांझी कहलाता है। वही ग्राम पंचायत का प्रधान होता है
० माल पहाड़िया में गोत्र नहीं पाया जाता है।
० कर्मा फागुन एवं नवाखानी इनके प्रमुख त्यौहार हैं।
० इन जनजाति में वधू मूल्य को पोन या बंदी कहा जाता है।
० माल पहाड़िया में वधू मूल्य में सूअर देने की प्रथा है, जो इनके आर्थिक स्तर और सामाजिक प्रतिष्ठा का प्रतीक है।
० इनका परिवार पितृसत्तात्मक एवं पितृवंशीय होता है।
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