झारखंड राज्य के प्रमुख राजवंश भाग 2
झारखंड राज्य के प्राचीन राजवंश भाग 2
३) पलामू का रक्सैल वंश:-
० पलामू में प्रारंभ में रक्सैलों का आधिपत्य था। यह रक्सैल राजपूताना क्षेत्र से रोहतासगढ़ होते हुए पलामू पहुंचे थे। वे स्वयं को राजपूत कहते थे।
० रक्सैलों ने कुछ समय तक सरगुजा को अपने राज्य में मिला लिया था।
० इस समय की महत्वपूर्ण जनजातियां खरवार, गोंड, माहे, कोरबा, पहाड़िया तथा किसान थी। इनमें सबसे अधिक संख्या खरवारों की थी, जिसके शासक *प्रताप धवल* थे।
० रक्सैलों का शासन काल काफी दिनों तक चला लेकिन बाद में इन्हें चेरों द्वारा अपदस्थ कर दिया गया।
४) सिंहभूम का सिंहवंश:-
० सिंहभूम को *पोराहाट* के सिंह राजाओं की भूमि के नाम से जाना जाता है। सिंह वंश के उत्तराधिकारियों का दावा है कि सिंहभूम में *"हो"* जाति के प्रवेश के पूर्व से ही वे अपना राज्य स्थापित कर चुके थे।
० लेकिन *हो जनजाति* के सदस्य इस दावे का खंडन करते हुए प्रतिवाद करते हैं कि सिंहभूम का नामकरण उनके कुलदेवता *सिंगबोंगा* के नाम पर हुआ है। यह मत ज्यादा सही प्रतीत होता है।
० सिंह राजवंशी राठौड़ राजपूत थे,जो पश्चिम भारत से आए थे और उन्होंने आठवीं शताब्दी में इस क्षेत्र पर आधिपत्य जमा लिया।
० सिंह वंश की पहली शाखा के संस्थापक *काशीनाथ सिंह* थे।
० इस वंश ने 52 पीढ़ियों तक राज किया।
० सिंह वंश की दूसरी शाखा का सत्ता अभिषेक 1205 ईस्वी के करीब हुआ था। इस शाखा के संस्थापक *दर्प नारायण सिंह* थे। उन्होंने 1205 से 1262 तक शासन किया।
० दर्प नारायण सिंह की मृत्यु के बाद *युधिष्ठिर नारायण सिंह* शासक बना जो 1262 ईस्वी से 1271 ईस्वी तक शासन करता रहा।
० युधिष्ठिर नारायण सिंह का उत्तराधिकारी *काशीराम सिंह* था, जिसके समय में नई राजधानी *"पोराहाट"* थी।
० इस राजवंश का चौथा शासक *अच्युत सिंह* था।
० अच्युत सिंह के बाद त्रिलोचन सिंह, अर्जुन सिंह, जगन्नाथ सिंह, अजय सिंह, शिकार सिंह, दयार सिंह, लक्ष्मी नारायण सिंह, चित्र सिंह ने क्रमशः राज किया।
० इस राजवंश का 13 वां राजा जगन्नाथ द्वितीय अत्याचारी और निरंकुश था, जिसके कारण *"भुइयां"* लोगों ने विद्रोह कर दिया।
० औरंगजेब के शासनकाल में महिपाल सिंह व काशीराम सिंह सिंहभूम के राजा हुए थे।
० पुरुषोत्तम सिंह के पुत्र अर्जुन सिंह पोरहाट तथा विक्रम सिंह सरायकेला के राजा बने।
० विक्रम सिंह ने अपने राज्य का विस्तार किया और खरसावां, केदरा, डुंगी, बंसकाई, आसनतली, पाटकोम आदि जीता एवं गम्हरिया पर भी कब्जा किया।
० विक्रम सिंह के 3 पुत्र थे बड़े पुत्र को सरायकेला तथा द्वितीय एवं तृतीय पुत्र को क्रमशः खरसावां आसनतली का राज्य मिला था।
० अर्जुन सिंह को 1857 में विद्रोहियों के साथ देने पर पोरहाट राज्य से पदच्युत कर बनारस जेल में बंद कर दिया गया था जहां 1870 ईस्वी में उनकी मृत्यु हो गई थी।
५) अन्य राजवंश:-
क) मानभूम का मान राजवंश:- मान राजाओं का राज हजारीबाग एवं मानभूम में विस्तृत था।
० गोविंदपुर धनबाद में कवि गंगाधर (1373-78) द्वारा रचित शिलालेख एवं हजारीबाग के दुधा पानी नामक स्थान से आठवीं सदी के शिलालेख में इनका उल्लेख है।
ख) रामगढ़ राज्य:- रामगढ़ राज्य की स्थापना 1368 ईस्वी के लगभग बाघदेव सिंह ने की थी।
० अपने बड़े भाई सिंह देव के साथ वह नागवंशी महाराजा की सेवा में थे।
० कालांतर में बाघदेव सिंह और उनके भाई सिंहदेव सिंह का नागवंशी राजाओं के साथ मतभेद हो गया। नागवंशी राजा से अलग होकर यह लोग कर्णपुरा आ गए यहां पर स्थानीय राजा को पराजित कर कर्णपुरा पर अधिकार कर लिया।
० दोनों भाइयों ने लगभग 21 परगनों पर कब्जा कर लिया था।
० उन लोगों ने *सीसिया* को अपनी पहली राजधानी बनाया बाद में राजधानी बदलकर *उर्दा* फिर *बादाम* और अंत में *रामगढ़* चली गई।
० राजा हेमंत सिंह (1604 से 1661) ने अपनी राजधानी उर्दा से हटाकर बादाम में स्थापित की थी।
० राजा दलेल सिंह ने अपनी राजधानी बादाम से हटाकर 1670 में रामगढ़ ले गया था।
० राजधानी परिवर्तन का मुख्य कारण भौगोलिक एवं ऐतिहासिक दृष्टि से बादाम का असुरक्षित होना था।
० 1772 ईस्वी में सिंह देव वंश के तेज सिंह (1772 से 1780) रामगढ़ के राजा बने। उन्होंने अपने शासन का संचालन *इचाक* से किया।
० 1880 ईस्वी के प्रारंभ में रामगढ़ राज्य एक तीसरे वंशज के हाथों में चला गया। इस वंश के प्रथम राजा ब्रह्म देव नारायण सिंह थे। इस वंश की राजधानी रामगढ़ से हटाकर हजारीबाग से लगभग 22 किलोमीटर की दूरी पर स्थित पद्मा में स्थापित की गई।
० पद्मा में एक राजप्रासाद का भी निर्माण किया गया, जो आज भी विद्यमान है।
० कामाख्या नारायण सिंह 1937 ईस्वी में रामगढ़ की गद्दी पर बैठे। इनकी राजधानी भी अंतिम समय तक पद्मा में ही रही।
० 1368 ईस्वी में बाघदेव द्वारा स्थापित रामगढ़ राज बिहार राज्य भूमि सुधार अधिनियम की धारा 3 के अंतर्गत 26 जनवरी, 1955 को समाप्त हो गया।
० रामगढ़ राज्य की राजधानियों का क्रम इस प्रकार रहा- उर्दा-सिसई, बादाम, रामगढ़, इचाक, पद्मा।
ग) पलामू का चेरो वंश:- पलामू का चेरो वंश छोटा नागपुर के नागवंशी एवं मानभूम के पंचेत राज्यों की तरह ही महान राजवंश था।
० चेरो वंश की स्थापना भागवत राय ने की थी इस वंश के राजाओं का राज्य क्षेत्र पलामू था।
घ) सिंहभूम का धाल वंश:- सिंहभूम के धालभूम क्षेत्र में धाल राजाओं का शासन था। धाल राजा संभवत: जाति के धोबी थे, वे नर बलि चढ़ाते थे।
० पंचायत के राजा भी संभवतः धोबी ही थे, उन्होंने एक ब्राह्मण कन्या से विवाह कर लिया था। इसी विवाह से उत्पन्न बालक ने धालभूम राज्य की स्थापना की थी।
च) खड़गडीहा राज्य:- खड़गडीहा राज रामगढ़ राज्य के उत्तर पूर्व में स्थित था।
० इस राज्य की स्थापना 15वीं सदी के *हंसराज देव* नामक एक दक्षिण भारतीय ने की थी।
० मूलत: उसने बंदावत जाति के एक शासक को परास्त कर हजारीबाग के 90 किलोमीटर लंबे क्षेत्र को अपने अधिकार में कर लिया था।
० इस राजपरिवार का वैवाहिक संबंध अधिकांशत: उत्तर बिहार के ब्राह्मण जमींदार परिवारों के साथ था।
छ) पंचायत राज्य:- पंचेत राज्य मानभूम क्षेत्र का सर्वाधिक शक्तिशाली राज्य था।
० इस राज्य की उत्पत्ति और स्थापना के विषय में प्रचलित जनश्रुति के अनुसार इसकी स्थापना काशीपुर के राजा एवं रानी की तीर्थ यात्रा के क्रम में पैदा हुए पुत्र ने किया था।
० बड़ा होने पर यह बालक पहले मांझी बना, सिर्फ परगना 84 का राजा बना। इसी राजा ने आगे चलकर पंचेतगढ़ का निर्माण किया।
० राजा ने कपिला गाय की पूंछ को राज्य चिन्ह के रूप में स्वीकार किया।
० इस प्रकार प्राचीन एवं पूर्व मध्यकाल में छिटपुट आक्रमणों के बावजूद झारखंड में लगभग सभी क्षेत्र स्वतंत्र बने रहे और छोटा नागपुर क्षेत्र अपनी क्षेत्रीय स्वच्छंदता कायम रखने में कामयाब रहा।
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झारखंड राज्य के प्राचीन राजवंश भाग 2
३) पलामू का रक्सैल वंश:-
० पलामू में प्रारंभ में रक्सैलों का आधिपत्य था। यह रक्सैल राजपूताना क्षेत्र से रोहतासगढ़ होते हुए पलामू पहुंचे थे। वे स्वयं को राजपूत कहते थे।
० रक्सैलों ने कुछ समय तक सरगुजा को अपने राज्य में मिला लिया था।
० इस समय की महत्वपूर्ण जनजातियां खरवार, गोंड, माहे, कोरबा, पहाड़िया तथा किसान थी। इनमें सबसे अधिक संख्या खरवारों की थी, जिसके शासक *प्रताप धवल* थे।
० रक्सैलों का शासन काल काफी दिनों तक चला लेकिन बाद में इन्हें चेरों द्वारा अपदस्थ कर दिया गया।
४) सिंहभूम का सिंहवंश:-
० सिंहभूम को *पोराहाट* के सिंह राजाओं की भूमि के नाम से जाना जाता है। सिंह वंश के उत्तराधिकारियों का दावा है कि सिंहभूम में *"हो"* जाति के प्रवेश के पूर्व से ही वे अपना राज्य स्थापित कर चुके थे।
० लेकिन *हो जनजाति* के सदस्य इस दावे का खंडन करते हुए प्रतिवाद करते हैं कि सिंहभूम का नामकरण उनके कुलदेवता *सिंगबोंगा* के नाम पर हुआ है। यह मत ज्यादा सही प्रतीत होता है।
० सिंह राजवंशी राठौड़ राजपूत थे,जो पश्चिम भारत से आए थे और उन्होंने आठवीं शताब्दी में इस क्षेत्र पर आधिपत्य जमा लिया।
० सिंह वंश की पहली शाखा के संस्थापक *काशीनाथ सिंह* थे।
० इस वंश ने 52 पीढ़ियों तक राज किया।
० सिंह वंश की दूसरी शाखा का सत्ता अभिषेक 1205 ईस्वी के करीब हुआ था। इस शाखा के संस्थापक *दर्प नारायण सिंह* थे। उन्होंने 1205 से 1262 तक शासन किया।
० दर्प नारायण सिंह की मृत्यु के बाद *युधिष्ठिर नारायण सिंह* शासक बना जो 1262 ईस्वी से 1271 ईस्वी तक शासन करता रहा।
० युधिष्ठिर नारायण सिंह का उत्तराधिकारी *काशीराम सिंह* था, जिसके समय में नई राजधानी *"पोराहाट"* थी।
० इस राजवंश का चौथा शासक *अच्युत सिंह* था।
० अच्युत सिंह के बाद त्रिलोचन सिंह, अर्जुन सिंह, जगन्नाथ सिंह, अजय सिंह, शिकार सिंह, दयार सिंह, लक्ष्मी नारायण सिंह, चित्र सिंह ने क्रमशः राज किया।
० इस राजवंश का 13 वां राजा जगन्नाथ द्वितीय अत्याचारी और निरंकुश था, जिसके कारण *"भुइयां"* लोगों ने विद्रोह कर दिया।
० औरंगजेब के शासनकाल में महिपाल सिंह व काशीराम सिंह सिंहभूम के राजा हुए थे।
० पुरुषोत्तम सिंह के पुत्र अर्जुन सिंह पोरहाट तथा विक्रम सिंह सरायकेला के राजा बने।
० विक्रम सिंह ने अपने राज्य का विस्तार किया और खरसावां, केदरा, डुंगी, बंसकाई, आसनतली, पाटकोम आदि जीता एवं गम्हरिया पर भी कब्जा किया।
० विक्रम सिंह के 3 पुत्र थे बड़े पुत्र को सरायकेला तथा द्वितीय एवं तृतीय पुत्र को क्रमशः खरसावां आसनतली का राज्य मिला था।
० अर्जुन सिंह को 1857 में विद्रोहियों के साथ देने पर पोरहाट राज्य से पदच्युत कर बनारस जेल में बंद कर दिया गया था जहां 1870 ईस्वी में उनकी मृत्यु हो गई थी।
५) अन्य राजवंश:-
क) मानभूम का मान राजवंश:- मान राजाओं का राज हजारीबाग एवं मानभूम में विस्तृत था।
० गोविंदपुर धनबाद में कवि गंगाधर (1373-78) द्वारा रचित शिलालेख एवं हजारीबाग के दुधा पानी नामक स्थान से आठवीं सदी के शिलालेख में इनका उल्लेख है।
ख) रामगढ़ राज्य:- रामगढ़ राज्य की स्थापना 1368 ईस्वी के लगभग बाघदेव सिंह ने की थी।
० अपने बड़े भाई सिंह देव के साथ वह नागवंशी महाराजा की सेवा में थे।
० कालांतर में बाघदेव सिंह और उनके भाई सिंहदेव सिंह का नागवंशी राजाओं के साथ मतभेद हो गया। नागवंशी राजा से अलग होकर यह लोग कर्णपुरा आ गए यहां पर स्थानीय राजा को पराजित कर कर्णपुरा पर अधिकार कर लिया।
० दोनों भाइयों ने लगभग 21 परगनों पर कब्जा कर लिया था।
० उन लोगों ने *सीसिया* को अपनी पहली राजधानी बनाया बाद में राजधानी बदलकर *उर्दा* फिर *बादाम* और अंत में *रामगढ़* चली गई।
० राजा हेमंत सिंह (1604 से 1661) ने अपनी राजधानी उर्दा से हटाकर बादाम में स्थापित की थी।
० राजा दलेल सिंह ने अपनी राजधानी बादाम से हटाकर 1670 में रामगढ़ ले गया था।
० राजधानी परिवर्तन का मुख्य कारण भौगोलिक एवं ऐतिहासिक दृष्टि से बादाम का असुरक्षित होना था।
० 1772 ईस्वी में सिंह देव वंश के तेज सिंह (1772 से 1780) रामगढ़ के राजा बने। उन्होंने अपने शासन का संचालन *इचाक* से किया।
० 1880 ईस्वी के प्रारंभ में रामगढ़ राज्य एक तीसरे वंशज के हाथों में चला गया। इस वंश के प्रथम राजा ब्रह्म देव नारायण सिंह थे। इस वंश की राजधानी रामगढ़ से हटाकर हजारीबाग से लगभग 22 किलोमीटर की दूरी पर स्थित पद्मा में स्थापित की गई।
० पद्मा में एक राजप्रासाद का भी निर्माण किया गया, जो आज भी विद्यमान है।
० कामाख्या नारायण सिंह 1937 ईस्वी में रामगढ़ की गद्दी पर बैठे। इनकी राजधानी भी अंतिम समय तक पद्मा में ही रही।
० 1368 ईस्वी में बाघदेव द्वारा स्थापित रामगढ़ राज बिहार राज्य भूमि सुधार अधिनियम की धारा 3 के अंतर्गत 26 जनवरी, 1955 को समाप्त हो गया।
० रामगढ़ राज्य की राजधानियों का क्रम इस प्रकार रहा- उर्दा-सिसई, बादाम, रामगढ़, इचाक, पद्मा।
ग) पलामू का चेरो वंश:- पलामू का चेरो वंश छोटा नागपुर के नागवंशी एवं मानभूम के पंचेत राज्यों की तरह ही महान राजवंश था।
० चेरो वंश की स्थापना भागवत राय ने की थी इस वंश के राजाओं का राज्य क्षेत्र पलामू था।
घ) सिंहभूम का धाल वंश:- सिंहभूम के धालभूम क्षेत्र में धाल राजाओं का शासन था। धाल राजा संभवत: जाति के धोबी थे, वे नर बलि चढ़ाते थे।
० पंचायत के राजा भी संभवतः धोबी ही थे, उन्होंने एक ब्राह्मण कन्या से विवाह कर लिया था। इसी विवाह से उत्पन्न बालक ने धालभूम राज्य की स्थापना की थी।
च) खड़गडीहा राज्य:- खड़गडीहा राज रामगढ़ राज्य के उत्तर पूर्व में स्थित था।
० इस राज्य की स्थापना 15वीं सदी के *हंसराज देव* नामक एक दक्षिण भारतीय ने की थी।
० मूलत: उसने बंदावत जाति के एक शासक को परास्त कर हजारीबाग के 90 किलोमीटर लंबे क्षेत्र को अपने अधिकार में कर लिया था।
० इस राजपरिवार का वैवाहिक संबंध अधिकांशत: उत्तर बिहार के ब्राह्मण जमींदार परिवारों के साथ था।
छ) पंचायत राज्य:- पंचेत राज्य मानभूम क्षेत्र का सर्वाधिक शक्तिशाली राज्य था।
० इस राज्य की उत्पत्ति और स्थापना के विषय में प्रचलित जनश्रुति के अनुसार इसकी स्थापना काशीपुर के राजा एवं रानी की तीर्थ यात्रा के क्रम में पैदा हुए पुत्र ने किया था।
० बड़ा होने पर यह बालक पहले मांझी बना, सिर्फ परगना 84 का राजा बना। इसी राजा ने आगे चलकर पंचेतगढ़ का निर्माण किया।
० राजा ने कपिला गाय की पूंछ को राज्य चिन्ह के रूप में स्वीकार किया।
० इस प्रकार प्राचीन एवं पूर्व मध्यकाल में छिटपुट आक्रमणों के बावजूद झारखंड में लगभग सभी क्षेत्र स्वतंत्र बने रहे और छोटा नागपुर क्षेत्र अपनी क्षेत्रीय स्वच्छंदता कायम रखने में कामयाब रहा।
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